...

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अनकही मोहब्बत
गुस्सा था, दर्द था; लोग थे, समय था।
हम कहते क्या? वो सुनते क्या?
कुछ ख़्वाब अग्नि से तौलते क्या!
दिल से बन कर मुख में रहा,
वो वाक्य अगर अंगड़ाई ले,
फिर आँखों से आँखों की बातें,
कैसे कहें कि मोहब्बत है।

रातों की चादर में छुपे सितारे,
उनसे पूछो, हमने क्या गुज़ारा।
चाँदनी में खोए थे जो पल,
वो लम्हे हमें अब भी है प्यारा।

वक्त की रेत पे जो लिखे थे नाम,
वो आज भी दिल से गुज़रते हैं।
कैसे कहें कि मोहब्बत है,
जब शब्द खुद भी बिखरते हैं।


© Gautam Kumar