मेरा साहिब
मज़ा तो तब है मोहब्बत का मुर्शिद
जब सामने वाला
शक्ल सूरत में ही नहीं दिलोदिमाग से भी
मुक़ाबिल हो,,,,
क्योंकि कोई किसी से कमतर न हो तो
इश्क़ का मज़ा ही कुछ और है
यूं तो सोचता है दिल,,,
दिन भर में ना जाने कितने ख्यालातों को
मगर साहिब तुम्हें सोचने का तो,,,,
मज़ा ही कुछ और है
Namita Chauhan
© All Rights Reserved
जब सामने वाला
शक्ल सूरत में ही नहीं दिलोदिमाग से भी
मुक़ाबिल हो,,,,
क्योंकि कोई किसी से कमतर न हो तो
इश्क़ का मज़ा ही कुछ और है
यूं तो सोचता है दिल,,,
दिन भर में ना जाने कितने ख्यालातों को
मगर साहिब तुम्हें सोचने का तो,,,,
मज़ा ही कुछ और है
Namita Chauhan
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