...

7 views

मेरा मीत कृष्ण
श्रीकृष्ण जैसा जिन्हें मित्र मिला, उनको ना दुनिया प्यारी है।
सारी जगत् एक ओर, दूसरी तरफ मेरा मित्र बलिहारी है।।
नव पथ दिलाकर उसने, मेरी कमजोरियों को दूर भगाया है,
दूर होकर भी उसने, मेरे मन को मजबूत बनाया है।
मन ही जाने ये मन की माया, ये बन्धन बड़ी निराली है।
ये बन्धन अब न टूटेगी, मेरा मित्र कृष्ण मुरारी है।।
विरह सम वेदना ना कोई, कृष्ण का होकर कृष्ण के लिए रोई।
जाके हृदय सांच भाव है, वो ही मित्र के लिए अकुलाई।।
भाव के भूखे मेरा कृष्ण है, भाव विभोर स्वयं ही होए।
तीन लोक के स्वामी प्रभू मेरे, एक सुदामा के लिए रोए।।
© 💥B@v@₹!💥