जिस्म जो तिरंगे में लिपटे घर आते हैं।
मिट जाते हैं निशान पैरों के, लहरों से
पल भर ही समेटती है रेत खयालों को
अमर तो किस्से हो जाते हैं उन वीरों के
जिनके खून ने रंगा है पहाड़ों को
कुछ चीख कर, चिल्ला कर, कुछ बेहका कर
धर्म के नाम पर अधर्म की दीवार बनाते हैं
पर हमारे जवान भारत मां के लिए
हंस कर तिरंगे में लिपट आते हैं
अज्ञानी तो मंदिर-मस्ज़िद में ही लड़ जाते हैं
अज्ञान तक ही वह सिमटे रह पाते हैं
पर यह नीली वर्दी में वीर, निडर
आसमान से तारे तोड़ लाते हैं
हम अपने घरों में बैठ कर
जून की गर्मी को कोसते रह जाते हैं
हमारे वीर चूरू की धूप में बैठे बैठे
सूरज को ही ललकार आते हैं
जनवरी की ठंड से जब सब
चार दिवारी में दुबक से जाते हैं
परन्तु भारत माता के ये रक्षक
सियाचीन में भी तिरंगा फहरा आते हैं
जिनको दुश्मन के डर पता नहीं
जिनको मौत का खौफ सताता नहीं
अंधकार से सांसें अपनी खींच लाते हैं
हमारे वीर तो हर जंग साहस से ही जीत आते हैं
वीर नहीं शूरवीर हैं वो शरीर जो,
भारत माता पर न्योछावर हो जाते हैं
किस्मत वाले हैं वह जिस्म जो
तिरंगे में लिपटे घर आते हैं।
पल भर ही समेटती है रेत खयालों को
अमर तो किस्से हो जाते हैं उन वीरों के
जिनके खून ने रंगा है पहाड़ों को
कुछ चीख कर, चिल्ला कर, कुछ बेहका कर
धर्म के नाम पर अधर्म की दीवार बनाते हैं
पर हमारे जवान भारत मां के लिए
हंस कर तिरंगे में लिपट आते हैं
अज्ञानी तो मंदिर-मस्ज़िद में ही लड़ जाते हैं
अज्ञान तक ही वह सिमटे रह पाते हैं
पर यह नीली वर्दी में वीर, निडर
आसमान से तारे तोड़ लाते हैं
हम अपने घरों में बैठ कर
जून की गर्मी को कोसते रह जाते हैं
हमारे वीर चूरू की धूप में बैठे बैठे
सूरज को ही ललकार आते हैं
जनवरी की ठंड से जब सब
चार दिवारी में दुबक से जाते हैं
परन्तु भारत माता के ये रक्षक
सियाचीन में भी तिरंगा फहरा आते हैं
जिनको दुश्मन के डर पता नहीं
जिनको मौत का खौफ सताता नहीं
अंधकार से सांसें अपनी खींच लाते हैं
हमारे वीर तो हर जंग साहस से ही जीत आते हैं
वीर नहीं शूरवीर हैं वो शरीर जो,
भारत माता पर न्योछावर हो जाते हैं
किस्मत वाले हैं वह जिस्म जो
तिरंगे में लिपटे घर आते हैं।