...

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शुद्ध प्रति
चाहती तो चाँद
मैं अवश्य हथेली
में भी भर लेती
और सहलाती उसे
उन पक्तियों की तरह
तुमने उस रात
मेरी चौखट पर खटखटाई थी
पर तुम्हारी आज
देर तक प्रतीक्षा में
उन्हें गुनगुनाते हुए भी
मेरी उंगलियों ने उन्हें
अभी अभी
काव्य रूप दे दिया...