Hindi Poetry on social issues - तेरी राह में भेड़िए
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घात लगाए बैठे हे भेड़िये
तेरी रूह से खेलने को
तु निकली तो हे घर को
पर भेड़िये नज़र गड़ाए हे
तुझे नोचने को
अच्छा सोचो अच्छा ही होगा
ये सोच हो गई हे पुरानी
तेरी राह में अब आने लगे हे
भेड़िए बनके राही
नहीं आयेगा...
घात लगाए बैठे हे भेड़िये
तेरी रूह से खेलने को
तु निकली तो हे घर को
पर भेड़िये नज़र गड़ाए हे
तुझे नोचने को
अच्छा सोचो अच्छा ही होगा
ये सोच हो गई हे पुरानी
तेरी राह में अब आने लगे हे
भेड़िए बनके राही
नहीं आयेगा...