...

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विदाई
शुभ विवाह संपन्न हुआ
अब समय विदाई का आया
खुशियों के अंबर में अकस्मात
गम का एक बादल छाया
जो चुप सा बैठा है,खुद को
लड़की का पिता बताता हैं
महक रहे सब आस पास
ना जाने क्यूँ वो मुरझाया

पल भर चुप ना होने वाली लड़की
अब गुमसुम सी क्यूँ हो रही है
जीवन भर के सायम्म को
ना जाने क्यूँ अब खो रही है
कल तक कहती थी ब्याह रचा दो
मैं खुशियाँ पा जाऊँगी
अभी तो खुश थी कुछ पल पहले
अब फूट फूट कर रो रही है

कहती है मम्मी नहीं जाना
मैने पापा को छोड़ कर
मैं कैसे जी पाउंगी मम्मी
तुम सब से नाता तोड़ कर
ये भाई कैसा पत्थर दिल है
मुझसे अब तक मिलने नहीं आया
रो रहा है या हँस रहा है
मुझसे यूँ मुँह को मोड़ कर

वो कहती है पापा कुछ तो बोलो
ये लोग मुझे ले जाएंगे
एक बार जो ये ले गए
फिर वापस नहीं ये लाएंगे
पापा रोने से कुछ नहीं होगा
अभी भी वक़्त है रोक लो मुझको
जो एक बारी हम चले गए
फिर लौट कभी ना आएंगे

अब चली गई पगली रो-धो कर
अपने पिया के घर की ओर
एक जोड़ गई एक तोड़ गई
प्रेम से बंधे रिश्ते की डोर
बड़ी ख़ुशी से कूद कूद कर
हम भी नाचे थे जिसमें
सब गुमसुम बैठे, खत्म हुआ अब
इस घर में बारात का शोर

© आशिष उपाध्याय