...

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कह दूँ क्या !!
बिना छत के जो खड़ी है चारदिवारी, उसे मकान कह दूँ क्या
कुछ मुर्दा-दिल इंसान रहते हैं यहाँ, इसे शमशान कह दूँ क्या

सोच हैवानों सी शक्ल इंसानो की है, उसे इंसान कह दूँ क्या
शायद मजबूरियां रही होंगी उसकी, उसे बेईमान कह दूँ...