स्वयं की पहचान धन से...
मुझ में जब धन कमाने की ताक़त नहीं रही
तब मेरे घर में मेरी ज़रूरत नहीं रही
उठ जाता है पिता का साया भी उनके बच्चों के सर से
पैदा होते ही वो नाम का आसमान सलामत है ,
पर वह पैसों की छत नहीं रही
मुझ में जब धन कमाने की ताक़त नहीं रही
तब मेरे घर में मेरी ज़रूरत नहीं रही
लोगों की ज़रूरतें तो देखा करता था मैं ,
शिक़वा-गिला मुझसे सभी की बनी रही
ख़ुदा-ए-आसमां बरसों बरस तक सलामत रहा मुझ पर
मेरे पास पैसों की छत नहीं रही
मुझ में जब धन कमाने की ताक़त नहीं रही
सभी के दिल में मेरी ज़रूरत नहीं रही
इश्क़ के इम्तिहान में रही ज़रूरत पैसों की ,
लोगों...