...

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मेरी पहचान क्या जानते हो।
मेरे किरदार पर अगर सवाल हो तो।
आपसे नज़राना चाहता हूं।।

अभी तलक तो कुछ ख़ास पता नही तुम्हे भी।
आओ अपने बारे में थोड़ी और फितरत बताना चाहता हूं।।

कभी हमारे नाम से भी महफिलें सुकसत हुआ करती थी।
कभी गलियारे में दोस्ती और मोहब्बत दोनो रंगो में नहाती थी।
नस और नज़्म की बात ही क्या है।
कभी हमारे नाम से भी दुश्मनी हुआ करती थी।

आज फिर एक बार वही इतिहास बताना चाहता हूं।
मैं अपने आप से तुमको रूबरू कराना चाहता हूं।।

मेरी पहचान मेरा रुतबा सिर्फ नाम का रह गया।
जो रखा था संभाल कर सपना वो अधूरा ही रह गया।।
ये महफिलें अब उतनी दिलचस्प नही लगती।
मेरे दोस्तों का अब खाली निशा रह गया।।

एक जरूरत थी मुझे भी सहारे की।
एक नज़र ने ही वो कमाल कर दिया।
घर से दूर घर की यादमें।
आज यहां हूं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे सामने।

और भी दिल में बहुत कुछ है।
वक्त के साथ वक्त के बाद भी जीना चाहता हूं।
गमों की छाव में भी मुस्कुराना जनता हूं।
कोन अपना है कोन बेगाना है।
इंसान इंसान की पहचान
को खूब पहचानता हूं।।