...

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बेटियाँ!!!😊😊😊
कभी मारा मुझे इसी समाज ने
कभी मारा इसके गिरे रिवाज ने
कभी बना सती झोंक दिया आग में
कभी मारा मुझे दहेज के जहर से
कभी जली उसी के कहर से
कभी दुनियाँ दिखा के मारा मुझे
कभी मारा मुझे माँ की कोख में!!!!
कभी मारा मुझे बन मर्दानगी
कभी मारा एकतरफा चाहत की चादर में
कभी जिन्दा रह भी मैं मरी थी उस दिन
कभी बन के वैश्या बिकी मैं बाजार की ओट में
कभी बनकर मैं लुटी निर्भया सी चोट में
कभी मारा मुझे माँ की कोख में!!!!!
कभी द्रोपदी बन मैं लुटी समाज में
कभी सीता बन मेरा हरण हुआ
कभी ना देखा सबने मंदिर ,मस्जिद
कभी ना मेरी उम्र का जिक्र किया लिहाज में
कभी ना आते कृष्ण बचाने अब
कभी ना चंडी, काली सी सोंच में
कभी मारा मुझे माँ की कोख में!!!!
कभी आँखो में ख्वाब सजाया मैंने
कभी साँसों को खुद ही जलाया मैंने
कभी ढूंढा खुद को बंद आँखो में
कभी मौत आई मेरी मुस्कान पर भी
कभी मौत आई मेरी पहचान पर भी
कभी जीते जी मुस्काई मैं अपनी ही चोट में
कभी मारा मुझे माँ की कोख में!!!
कभी मौत आती रही और मैं मरती रही
कभी ओ मारती रही और मैं सहती रही
कभी टूटा जो सब्र तो पूछा मैंने भी शोर में
कभी तो सुकून दे मुझे क्यों मैं परेशान हूँ
कभी मुस्काई वो और बोल पड़ी
चुप रह जा अब इस शोर में
कभी मारा मुझे माँ की कोख में!!!!