समय :
समय की क्या बात करू,
ये स्वयं अर्थ बताता है,
कल से कहा, आज खड़ा है,
इसी अंतर को बतलाता है...
समय है साहब, स्वयं अर्थ बताता है...
जब गौर से देखा जीवन को ,
क्षण भर खुद को रोक लिया,
किस क्षण में मैंने क्या किया,
खुद को खुद से जोड़ लिया...
समय स्वयं बतलाता है की,
कल में आज क्या अंतर है,
दो घड़ियो के बीच घटित जो,
वही समय का अंतर है...
चलो तुम्हें ले चलते हैं हम,
यहीं आज समझाने को,
समय निकल जाता है कैसे,
कविता के संग बतलाने को...
पूर्व कल में सूर्योदय से, सुप्रभात का पता चला,
और जब जंगल चर के घर गाय आईं, तब संध्या का भी पता चला,
तारो ने भी की रोशनी, आसमान जगमगा उठा,
चंदा मामा निकल पड़े जब, तबी रात का पता चला...
समय बढ़ा फिर थोड़ा आगे,
माह ऋतू के ज्ञान स्वरूप,
हुआ आकलन मौसम का फिर,
जब ऋतुओं का बना दस्तूर,
ऋतुएं छोटी कालखंड है,
मौसम को दर्शाती है,
माह उन्ही से पता लगाते,
ये पूर्वकाल की बातें हैं।
पूर्वकाल में बुजुर्गों ने,
दिया सदा सटीक ज्ञान,
पूज्य मानते नदियों को हम,
करो आधार के साथ प्रणाम।
नदियां बहती कल कल कर के,
भिन्न- भिन्न दिशाओं में,
आचमन करते है जल से,
आधार रूपी सम्मान में,
ये समय उस पूर्वकाल का,
थोड़ा साधरण,थोडे सरल थे लोग,
कोई दिखावा ना कोई ढोंग थे करते,
निर्मल सरल था उनका योग,
चाहत बस इतनी सी है,
शुद्ध कर्म शुभ कार्य करे,
मोह नहीं था लोभ किसी का,
जब पूर्वकाल की बात करे,
आज बदलता समय बताता,
सब ओझल सब खो सा गया,
मैं दिखा रही हूं अंतर क्षण का,
कैसे समय बदल सा गया ,
कोई सूर्योदय, कोई सांझ न देखे,
कोई बात चांदनी की ना करे,
ये समय उलट और पलट गया है,
कोई ऋतुएं अब जान ना पड़े ,
किसे बताऊं सुध निर्मल जल का,
क्या स्वरुप है गंगा का,
आचमन मात्र करने से ही,
पवित्र हो गया मनुष्य सदा.
नहीं समय का मोल किसी को,
नहीं महत्व क्षण भर का है,
ये मोल तभी होता है उसको,
जब इंसान क्षण खो देता है।
समय बहुत बलवान है होता,
पलट वही दोहराता है,
कर्म सभी का समक्ष रूप में,
सबकी करनी दिखलाता है।
चलो समय का मूल मान लो,
मन से निर्मल रहना आप,
गलती, मोह, छल, कपट कभी ना,
वर्त्तमान में करना आप।
वर्त्तमान और भूतकाल का,
संगम इतनाअच्छा है,
जोड़ उनकी को कर्म रूप में,
भविष्य उसका प्रतिफल है।
© Smriti's Tiny World
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ये स्वयं अर्थ बताता है,
कल से कहा, आज खड़ा है,
इसी अंतर को बतलाता है...
समय है साहब, स्वयं अर्थ बताता है...
जब गौर से देखा जीवन को ,
क्षण भर खुद को रोक लिया,
किस क्षण में मैंने क्या किया,
खुद को खुद से जोड़ लिया...
समय स्वयं बतलाता है की,
कल में आज क्या अंतर है,
दो घड़ियो के बीच घटित जो,
वही समय का अंतर है...
चलो तुम्हें ले चलते हैं हम,
यहीं आज समझाने को,
समय निकल जाता है कैसे,
कविता के संग बतलाने को...
पूर्व कल में सूर्योदय से, सुप्रभात का पता चला,
और जब जंगल चर के घर गाय आईं, तब संध्या का भी पता चला,
तारो ने भी की रोशनी, आसमान जगमगा उठा,
चंदा मामा निकल पड़े जब, तबी रात का पता चला...
समय बढ़ा फिर थोड़ा आगे,
माह ऋतू के ज्ञान स्वरूप,
हुआ आकलन मौसम का फिर,
जब ऋतुओं का बना दस्तूर,
ऋतुएं छोटी कालखंड है,
मौसम को दर्शाती है,
माह उन्ही से पता लगाते,
ये पूर्वकाल की बातें हैं।
पूर्वकाल में बुजुर्गों ने,
दिया सदा सटीक ज्ञान,
पूज्य मानते नदियों को हम,
करो आधार के साथ प्रणाम।
नदियां बहती कल कल कर के,
भिन्न- भिन्न दिशाओं में,
आचमन करते है जल से,
आधार रूपी सम्मान में,
ये समय उस पूर्वकाल का,
थोड़ा साधरण,थोडे सरल थे लोग,
कोई दिखावा ना कोई ढोंग थे करते,
निर्मल सरल था उनका योग,
चाहत बस इतनी सी है,
शुद्ध कर्म शुभ कार्य करे,
मोह नहीं था लोभ किसी का,
जब पूर्वकाल की बात करे,
आज बदलता समय बताता,
सब ओझल सब खो सा गया,
मैं दिखा रही हूं अंतर क्षण का,
कैसे समय बदल सा गया ,
कोई सूर्योदय, कोई सांझ न देखे,
कोई बात चांदनी की ना करे,
ये समय उलट और पलट गया है,
कोई ऋतुएं अब जान ना पड़े ,
किसे बताऊं सुध निर्मल जल का,
क्या स्वरुप है गंगा का,
आचमन मात्र करने से ही,
पवित्र हो गया मनुष्य सदा.
नहीं समय का मोल किसी को,
नहीं महत्व क्षण भर का है,
ये मोल तभी होता है उसको,
जब इंसान क्षण खो देता है।
समय बहुत बलवान है होता,
पलट वही दोहराता है,
कर्म सभी का समक्ष रूप में,
सबकी करनी दिखलाता है।
चलो समय का मूल मान लो,
मन से निर्मल रहना आप,
गलती, मोह, छल, कपट कभी ना,
वर्त्तमान में करना आप।
वर्त्तमान और भूतकाल का,
संगम इतनाअच्छा है,
जोड़ उनकी को कर्म रूप में,
भविष्य उसका प्रतिफल है।
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