कुदरत
हवा चलती गई, बारिश होती गई।
पत्ते झड़ते गए, धूल उड़ती गई।
लोग भूलने लगे , हमे याद आती गई।
कुदरत का निज़ाम छाने लगा,
हर शख्स इतराने लगा।
हम भी जाने लगे, ज़माना भी बुलाने लगा।
धूप बढ़ती गई, और छाव हटती गई।
नाले, नहर, नदिया और पहाड़।...
पत्ते झड़ते गए, धूल उड़ती गई।
लोग भूलने लगे , हमे याद आती गई।
कुदरत का निज़ाम छाने लगा,
हर शख्स इतराने लगा।
हम भी जाने लगे, ज़माना भी बुलाने लगा।
धूप बढ़ती गई, और छाव हटती गई।
नाले, नहर, नदिया और पहाड़।...