नींव पर दरारें
# समाज की नींव पर दरार,
कानून का पालन न हो रहा है,
न्याय की उम्मीदें टूटती जा रही हैं।
कानून की किताबें भरी हैं,
पर न्याय की राहें खाली हैं।
दरारें बढ़ती जा रही हैं,
और समाज की नींव खिसक रही है।
संविधान की धाराएं,समानता और न्याय की बातें कहती हैं।
पर वास्तविकता में क्या है,
न्याय की उम्मीदें टूटती हैं।
समाज की एकता को तोड़ती है।
आखिर अब कर भी क्या सकतें हैं , we want justice चिल्लाने के,
इसके टुटने के इंतज़ार करने के ।
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कानून का पालन न हो रहा है,
न्याय की उम्मीदें टूटती जा रही हैं।
कानून की किताबें भरी हैं,
पर न्याय की राहें खाली हैं।
दरारें बढ़ती जा रही हैं,
और समाज की नींव खिसक रही है।
संविधान की धाराएं,समानता और न्याय की बातें कहती हैं।
पर वास्तविकता में क्या है,
न्याय की उम्मीदें टूटती हैं।
समाज की एकता को तोड़ती है।
आखिर अब कर भी क्या सकतें हैं , we want justice चिल्लाने के,
इसके टुटने के इंतज़ार करने के ।
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