...

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कैद
जिस जाल से तुम्हें निकालना चाहते थे
उस जाल में खुद ही फस गए हैं मां

दिखाना चाहते थे तुम्हे आज़ादी होती है कैसी
तो अब ख़ुद सलाखों के पीछे कैद हुए हैं मां

हँसाना चाहते थे तुझे चाहते थे तेरे साथ खुशी
तो अब मुस्कुराहट को भी तरसते हैं मां
© बावरामन " शाख"