उठ जा पगले,क्यों नाराज़ होता है
उठ जा पगले,
क्यों,
उदास होता है।
वो अपना जीवन जी रहे है,
तु अपना जीवन क्यों नहीं जीता है ।
क्या हुआ,
अगर किसी ने ना बुलाया तुझे,
तु यूं उन पर नाराज़ हो,
क्यों समय बर्बाद करता है ।
उठ जा पगले,
क्यों,
उदास होता है।
मजबूरी होगी कोई,
कह कर, क्यों जाने नहीं देता है।
दूसरों की गलतियों पर गुस्सा कर ,
तुझे भी क्या मिलता है ।
वो तो ना सुधरेंगे, तेरी बातो से,
ये तु भी जानता है,
तो क्यों नहीं खुद में सुधार करता है ।
कब तक तेरी खुशी
दूसरों पर निर्भर रहेगी ।
खुद का जलसा खुद मानना
क्यों नहीं सीखता है....
ये अब तु जानता है,
तो क्यों उदास होता है।
उठ भी जा पगले,
क्यों नाराज़ होता है ।
क्यों,
उदास होता है।
वो अपना जीवन जी रहे है,
तु अपना जीवन क्यों नहीं जीता है ।
क्या हुआ,
अगर किसी ने ना बुलाया तुझे,
तु यूं उन पर नाराज़ हो,
क्यों समय बर्बाद करता है ।
उठ जा पगले,
क्यों,
उदास होता है।
मजबूरी होगी कोई,
कह कर, क्यों जाने नहीं देता है।
दूसरों की गलतियों पर गुस्सा कर ,
तुझे भी क्या मिलता है ।
वो तो ना सुधरेंगे, तेरी बातो से,
ये तु भी जानता है,
तो क्यों नहीं खुद में सुधार करता है ।
कब तक तेरी खुशी
दूसरों पर निर्भर रहेगी ।
खुद का जलसा खुद मानना
क्यों नहीं सीखता है....
ये अब तु जानता है,
तो क्यों उदास होता है।
उठ भी जा पगले,
क्यों नाराज़ होता है ।