...

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मैं
मैं बार बार टूटती हूँ,
बार बार उठती हूँ,

इंतज़ार ख़त्म नहीं होता,
बस दिन गिनती रहती हूँ,

पर ना तुम आते हो,मैं बार बार टूटती हूँ,
बार बार उठती हूँ,

इंतज़ार ख़त्म नहीं होता,
बस दिन गिनती रहती हूँ,

पर ना तुम आते हो,
ना तुम्हारी कोई ख़बर,

ख़तों का सिलसिला था कभी,
अब पुराने कागज़ पीले पड़ गए हैं,

चेहरा दिखता था तुम्हारा कागज़ पर,
अब धुंधली सी याद बाक़ी है बस,

आवाज़ तो जैसे भूल ही गई हूँ मैं,...