...

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ज़िन्दगी
फरहत ढूंढते - ढूंढते
हम हयात को जीना भूल गए
शिकायत वक़्त से करते-करते
ख्वाहिश तो बनते देखा है,
पर मेरे कोई खास गुंजाइश तो नहीं।
बस शिद्दत से प्यार मांगा,
और दूसरो का ज़रा सा करार मांगा है।
पर अपनापन लुटाते -लुटाते
हम मूरत को अपने ही
ज़िन्दगी में लुटाना भूल गए,
की शिकवा करते - करते
इनायत करना हम भूल गए।