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गौरा की प्रतीक्षा
#प्रतिक्षा#प्रेम#साहित्य#हिंदी

स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
हम फिर चलते ही जायेंगे
नयनों को तनिक न झुकाएंगे
इन नयनों को जो मूंद लिया
गला जो फिर से रूंध दिया
आंखों से ओझल हो जायेगा
वो निर्मोही लौट न आयेगा
जटा में धारण किए जो चांद
मोह के धागों में उस को बांध
गौरा फिर लौट कर आई है
यह प्रतीक्षा रंग फिर लाई है



© preet