याद बहुत आती हो "माँ"
बहुत सुंदर पंक्तियां****
कितनी ऐसी बातें होंगी जो
मैं तुझसे और तू मुझसे
कह नहीं पाती हो,,, मां,
हर रोज़ सुबह उठकर मैं जब भी चाय बनाती हूं,,, तुम याद बहुत आती हो,,, मां,
बिना कुछ भी खाए जब मैं
काम पर लग जाती हूं या
खुद अपने बच्चों की खातिर वो घी वाली रोटी बनाती हूं,,, तो याद बहुत आती हो,,, मां,
रूखे बालों में तेल लगा कर
खुद ही खुदको समझाती हूं,
काला टीका भी कौन करे
जब सज-धजकर बाहर आती हूं,
तब याद बहुत आती हो,,, मां,
आहाऽऽऽ वो तेरे हाथ का जादू,
कि बाहर का खाना याद नहीं,
वो साधारण सब्जी रोटी में
जाने क्या...
कितनी ऐसी बातें होंगी जो
मैं तुझसे और तू मुझसे
कह नहीं पाती हो,,, मां,
हर रोज़ सुबह उठकर मैं जब भी चाय बनाती हूं,,, तुम याद बहुत आती हो,,, मां,
बिना कुछ भी खाए जब मैं
काम पर लग जाती हूं या
खुद अपने बच्चों की खातिर वो घी वाली रोटी बनाती हूं,,, तो याद बहुत आती हो,,, मां,
रूखे बालों में तेल लगा कर
खुद ही खुदको समझाती हूं,
काला टीका भी कौन करे
जब सज-धजकर बाहर आती हूं,
तब याद बहुत आती हो,,, मां,
आहाऽऽऽ वो तेरे हाथ का जादू,
कि बाहर का खाना याद नहीं,
वो साधारण सब्जी रोटी में
जाने क्या...