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स्त्री के किरदार
घर में बेटी का जन्म होता है तो खुशीयां जनम लेती है
किसी के मन में हर्षो-उल्हास का सागर तो किसी के मन में खटास पनाह लेती है
मां बाप के लिए तो बेटी लक्ष्मी का रुप होती है
क्या बेटा क्या बेटी, दोनों एक ही स्वरुप होते है
अमावस से पोर्णिमा बढ़ते हुए चंद्रमा की तरह बेटी हर‌ दिन बड़ी होती है
अपने घर परिवार को एक नए परिवार से जोड़ने की यही एकमात्र कडी होती है
बेटी से अब वो नए रिश्तों में आगमन करती है
पत्नी, बहु, भाभी बन सभी के दिल स्नेह से भरती है
इन सब रिश्तों के बाद उसके पुर्नजन्म की बारी आती है
खुद से ही खुद के स्वरुप को जनम देती है
खुद के बचपन से लेकर उस नन्ही सी जान तक की सारी झाकियां उसके आंखों के सामने झलकती है
सारे रिश्ते एक तरफ और मां बनने का सौभाग्य एक तरफ यही खयाल मन में पनपती है
कर तक की बेटी, बहन आज की पत्नी, बहु, भाभी अब "मां" कहलाती है
वो नन्ही सी जान उसके घर में खुशीयां और उसके मां के जीवन की सार्थकता और भी फैलाती है
सचमुच एक स्त्री इतने किरदार कितने बखुबी निभा कर दिखलाती हैं !!


Aåshu(ashwini_tiwari)✍️