...

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टूटते-बिखरते सपने
न जाने कैसी किस्मत हाथ आई है,
स्नातक के साथ बेरोजगारी भी
साथ आई है,,
नौकरियों के दौर तो चले गए,
ये तो
टूटते-बिखरते सपनों की
सरकारी खैरात आई है ,,
कुछ बादल क्या छाए आसमान में,
और ढकां बजने लगा कि
बरसात आई है,,