...

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ज्यादा सरकार का
अजब चलन हुआ अखबार का।
मेरा कम तो ज्यादा सरकार का।।

दिखावा ही तो यहां बिकता है।
नहीं कसूर कोई पत्रकार का।।

मैं यह कहूं या कह दूं वो।
तुम्हें तो बहाना चाहिए इनकार का ।।

सिर पर है जब हाथ उसका।
क्या जोर चलेगा तब मक्कार का।।

लाख चेहरे बना लो तुम।
जबाब नहीं पर उस कलाकार का।।



© बूंदें