...

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>आज राम हूं लड़णो पड़सी<

ओ लालच को दड़बो है
क्यां की दुनियादारी है
बा मुर्गी ज्यान बचारी है
जकी टैम पर ब्यारी है

छ्याली खुश है बेटी जण दी
छुरी हूं बच भी ज्यावे
पूत का भाग पेट मं तय हीं
तूं क्याने लाड लडारी है

अब मिनखां पर आ ज्याओ
गंगा जी उलटी जारी है

पूत जायो तो जात जड़ूला
मावां भेळी भैरुं गारी है
छ्याली खूंटे बंधी देख री
बिको पूत बण्यौ तरकारी है

दूजी बार भी छोरी हूगी
घर मं मातम जारी है
जकी खुद भी बेटी हीं
जच्चा हूं बतळारी हीं

जणणौ तो सोरो है पण
चढ़बो कतो भार्यो है

काळी रात मं टिब्बा माळे
लक्खी बिणजारो गार्यो है
बिन मालिक की मरजी क
पत्तो ना हिल पार्यो है

ऊपर आळो म्हारो मालिक
ओ सारो खेल रचार्यो है

सुणो रामजी सुणणी पड़सी
म्है मांय हूं भर्या पड़्यां हां
थे रूखां नै हर्या कर्यां हा
टैम आयां बाळनां भी पड़सी

जै धरती पर थे भेज्या हीं
सुणल्यौ पाळणां भी पड़सी

म्हे पाप पुन्य दोन्युं करस्यां
थानै ई बात को बेरो हो
स्वर्ग नरक की क्यों छेड़ो हो
जे थाने ईकौ कोनी बेरो हो

दुर्गा लिछमी और सरस्वती
मुरत्यां कै फूल चढ़ावा हां
असली देवी ने तड़कावै
जिन्वती नै गाड्यांवां हां

मुर्तियां कै गळै मं हार चढैं
जीवां का गळा कटावां हां

थे एबर नीचे आर देखल्यो
उपर ओ जाळ गूंथो हो के ?
म्हे मन की मरजी करां हां ?
जणां बो बिणजारो झूठो हो के ?

रचणियां: छगन सिंह राजस्थानी
© छगन सिंह जेरठी