...

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"बिछड़ना"
लोग लड़ते हैं मीलने की खातिर,
पर अपनी तो बिछड़ने की लडाई थी,
जीत मीली हम दोनों को बस,
आंसू उनके गवाह थे,
तुम मछली थी और मे पंछी था,
हम दोनों की अलग थी दुनिया,अलग जुबां और अलग जहाँ था,
सब कहेते थे इस दुनिया में हम दोनों का मेल कहा,
पर भुल नहीं पाऊँगा वो लम्हा जब तुम्हने दिल की धड़कने सुनाई थी,
लोग लड़ते हैं मीलने की खातिर,
पर अपनी तो बिछड़ने की लडाई थी।
ये बिछड़ना मीलना यह तो सायद मोहब्बत हे,
अपने प्यार को वो दे देना जिसकी उसको जरूरत हे,
हम दोनों थे केंद कहीं अपनी समझ के सलाखों में तुमने ऐसे रिहा किया ख़ुद आजादी शरमाइ थी,
लोग लड़ते हैं मीलने की खातिर,
पर अपनी तो बिछड़ने की लडाई थी,
मिलेंगे ये वादा हे,रोज़ रात को चांद के जरिए,
मे भेंजुगा पेगाम तुम्हें इस बहती हुई हवा के जरिए,
साथ रहेंगे सोंच में दोनो नाजुक नाजुक यादों में,
में कहूँगा मुझको एक मिली थी पागल जिसने जिंदगी सिखाई थी,
तुम कहेना सबसे एक ज़िदी पडोशन अपने घर में आइ थी,
जुल्म बहोत हुआ अब चुप रहूँगा,जब भी मजलूम हे ज्यादा,
तुम जेसा बनना कहूँगा सबको,बस इतना ही मेरा वादा,
इस से ज्यादा कहूँगा कुछ तो फुट पडेगी रुलाइ भी,
लोग लड़ते हैं मीलने की खातिर,
पर अपनी तो बिछड़ने की लडाई थी।

~काफ़ीर