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दर्पणप्रतिबिंब

दर्पण प्रतिबिंब

जब भी देखती हूं खुद को नये रूप में पाती हूं,
कभी उदास होती हूं और कभी मुस्कुराती हूं.

काली जुल्फें कभी देर तक संवारा करती थी,
आज सफेद होते बालों को देख शरमाती हूं.

वक्त की धूप छांव ने बदल दिया रंग रुप मेरा,
तुमसे मिलती हूं कभी तुमसे नजर चुराती हूं.

पहले बहुत देर तक खुद को निहारा करती थी,
अब कुछ पल में तैयार होकर कार्यालय जाती हूं.