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क्या इसलिए कि वो नारी रही ?
क्या इसलिए कि वो नारी रही ?
वो कल भी सब सहती रही
वो आज भी रोती रही
है वो नारी तो क्या हुआ
दर्द तो उसमें भी है
एक रूह तो उसकी भी है
फ़िर भी वो लड़ती रही
हर ग़म से वो मिलती रही
सीता को भी देनी पड़ी
अग्निपरीक्षा चरित्र की
प्रेम की चाहत में तो
राधा भी बेचारी रही
क्या इसलिए कि वो नारी रही ?
शायद कोई बलशाली बना
द्रौपदी के वस्त्रों को छीनकर
वो न्याय से वंचित रही
अन्याय से घिरती रही
ख़्वाब तो उसके भी थे
जो ख़ुद में वो बुनती रही
इंसान की हैवानियत ने
एक पल में ही सब कुचल दिये
ये बात है उस निर्भया की
जो मर के भी मरती रही
सिसकियां वो भरती रही
क्या इसलिए कि वो नारी रही ?
© Pooja Sharma