गांव
एक छोटी सी पगडंडी ले जाए उस ओर
काकड़ आरती और दिंडी से होए जहाँ भोर !
खेत, पेड़, पहाड़ों की हरियाली में,
शीतल, निर्मल, चंचल सी बहती,
नदियों और नहरों के
इर्द-गिर्द झूमे ज़िंदगी।
जहाँ शहरों में गुम हैं भीड़ और होड़ में
अचंभित है ! कि कैसे पहचानते ?
पशु को भी, हो चाहे किसी और के ।
रात्रि...
काकड़ आरती और दिंडी से होए जहाँ भोर !
खेत, पेड़, पहाड़ों की हरियाली में,
शीतल, निर्मल, चंचल सी बहती,
नदियों और नहरों के
इर्द-गिर्द झूमे ज़िंदगी।
जहाँ शहरों में गुम हैं भीड़ और होड़ में
अचंभित है ! कि कैसे पहचानते ?
पशु को भी, हो चाहे किसी और के ।
रात्रि...