मेरे "अभिराम" की वामांगी होना चाहूंगी!
मैं सिर्फ़ तुम्हारा प्रेम नही
प्रणय की अविरल धार बनना चाहती हूं,
हिस्से में आई लकीरें नही
बल्कि तक़दीर की हर डार बनना चाहती हूं,
मैं उस छलिया कृष्ण के हिय में ही नही
राधा रूप धर वाम में निवास करना...
प्रणय की अविरल धार बनना चाहती हूं,
हिस्से में आई लकीरें नही
बल्कि तक़दीर की हर डार बनना चाहती हूं,
मैं उस छलिया कृष्ण के हिय में ही नही
राधा रूप धर वाम में निवास करना...