माया पृथ्वी की
इस पृथ्वी की तो माया अलग है ,
कहीं नदी है कहीं पहाड़ ,
कहीं रेत है कहीं चट्टान ,
कहीं हरा है कहीं उजाड़ ,
इस पृथ्वी की तो माया अलग है||
इस जल की भी माया अलग है ,
कहीं पर शीतल कहीं क्रूर है ,
कल-कल कर यह बहता है ,
कहीं-कहीं पर झाग उगलता जाता है||
इस रेत की भी...
कहीं नदी है कहीं पहाड़ ,
कहीं रेत है कहीं चट्टान ,
कहीं हरा है कहीं उजाड़ ,
इस पृथ्वी की तो माया अलग है||
इस जल की भी माया अलग है ,
कहीं पर शीतल कहीं क्रूर है ,
कल-कल कर यह बहता है ,
कहीं-कहीं पर झाग उगलता जाता है||
इस रेत की भी...