...

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मुझे मेरी उलझनों के साथ रहने दो
मुझे मेरी उलझनों के साथ रहने दो
यूॅं ही तबाहियों के आसार रहने दो

मुझे मंजिल की चाहत है यूॅं न सोच
मुझे इस सफर का सामान रहने दो

तेरी जिंदगी में अब बेशक मैं ना सही
अपने घर के पास मेरा मकान रहने दो

बंदिशों में हूॅं मगर जुस्तजू ए आसमां है बाकी अभी
फिलहाल उस अधखुली खिड़की पर निगाह रहने दो

डूबना मंजूर है मुझे मगर समंदर तो हो सही
दरियाओं को मेरे अश्को से आबाद रहने दो
# shubh
Shubhra pandey



© shubhra pandey