...

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अब नज़र नहीं आते..
अब नज़र नहीं आते शब भर जगाने वाले!
हंसा करके हमको बे-इन्तहा रूलाने वाले!

सुना, किसी के ख़्वाब की ताबीर हो गये,
मेरी इन आँखों में हसीं सपने सजाने वाले!

सोचते हैं आईने में कितना ठहर पाते होंगे,
सर- ए- राह अब हमसे नज़र चुराने वाले!

बेहतर था कि न देते तुम्हें हम हाथ अपना,
सताने को क्या कम थे हमें ये ज़माने वाले!

तुम सितमगर यक़ीनन कोई काफ़िर ही थे,
ज़ुल्म करते नहीं ख़ुदा से ख़ौफ़ खाने वाले!
© parastish

ताबीर - ख़्वाब का सच हो जाना
काफ़िर - नास्तिक, ख़ुदा को न मानने वाला

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