अब ये संस्कार कहलाते है ।
इनकी अपनी दुनिया है, उनकी अपनी
जो दो जंहा समझ सम्भाले रिस्ते
रह जाता है यहा पे पिस्ते ।
स्वार्थ हिन प्रेम सम्मान अब
परिभाषित नही हो पाते है ।
रित रिवाज भुला कर अब
सब खुददारी निभाते है
बडो को...
जो दो जंहा समझ सम्भाले रिस्ते
रह जाता है यहा पे पिस्ते ।
स्वार्थ हिन प्रेम सम्मान अब
परिभाषित नही हो पाते है ।
रित रिवाज भुला कर अब
सब खुददारी निभाते है
बडो को...