...

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एक वेशया की बेटियां के अस्तित्व की आसीमता।।
वो वेशया कहती की यह देश आजाद हुआ,
मगर हम नहीं और ना ही हमारी बेटियां,
तो कैसे हम कह सकते हैं कि यह आजादी हमारी है या हमारे बेटियों,
क्योंकि देश कितना भी आजाद क्यों ना हो,
जब तक एक वैश्य सुपुत्री आहुतिका बन रही,
तब यह आजादी का अमृत मंथन हमारे लिए नहीं बल्कि सिर्फ जग के लिए है,
मेरी बेटियों के नाम सुनिए -
वह निर्भया है, वह हातरसवी है,
इसलिए मैं किन्नर कल्याणवी मूर्ति हूं?
क्योंकि कलियुग का अन्त एक किन्नर के ही हाथ से होगा?
लेखक द्वारा वर्णित करते हुए कहा गया!
इस पर प्रशनवाचक द्वारा बहुत ही अच्छा सवाल हुआ -यह कैसे संभव है ये महान पुरूष ज़रा मुझे कह बतलाए?
लेखक प्रशनवाचक से बहुत ही मीठी वाणी से कहते हुए बोला -हे प्रशनवादी।
तुमने यह सवाल पूछकर बहुत अच्छी बात पूछी है?
इसलिए अब मैं तुम्हें एक असम्भव प्रेम गाथा एक वैशया तथा पुत्री के वात्सल्य से प्रेम उत्पन की गाथा सुनाता हूं इसलिए तुम्हारे मन ये जो प्रशन अंकित हुआ वो सामाप्त हो जाएगा।।
मगर इससे पूर्व तुमने जो प्रशन पूछे थे उनका उत्तर तुम्हें ज्ञात है ना?
प्रश्नवाचक हां कहते बोलता है!
जी आपकी इसलिए महान गाथा में एक वेशया और अन्य प्रेम गाथा क्यों असंभव है मुझे सब ज्ञात है।।
तो इस पर प्रशनवाचक की प्रशंसा करते हुए कहा कि पहले हमें संक्षिप्त बताओ यह गाथा एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त एक वैशया और अन्य की क्यों?
तब हम तुम्हें इसकी आगे की गाथा सुनाएंगे की एक वेशया ने एक झूठी कन्या को अपनी पुत्री के
रूप क्यों स्वीकार किया तथा उसके लिए क्या संघर्ष की एक किन्नर कल्याणवी मूर्ति से एक डायन तक की गाथा एक असंभव प्रेम गाथा।।🪔🕯️🙏🙏
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