ग़ज़ल
आज की पेशकश ~
देकर उसे उधारी देख।
फ़िर उसकी मक्कारी देख।
सही बीज, पानी औ खाद,
फ़िर खिलती फुलवारी देख।
अपना तू कासा तो देख,
फिर मेरी दिलदारी देख।
रोटी हासिल कर पहले ,
फ़िर पीछे तरकारी देख।
पड़े पड़े घर के भीतर,
लग जाए बीमारी देख।
काम बनाना है अपना,
थोड़ा पान सुपारी देख।
कश्मीर का राग वही,
जिन्ना से ज़रदारी देख।
हंटर बंदर के हाथों,
नाचे यहां मदारी देख।
बच्चा चिपटा छाती में,
भूखी वो महतारी देख।
चमन सींच अपने खूँ से,
फ़िर अपनी हक़दारी देख।
जिसे बेवफा कहता है,
उसकी भी लाचारी देख।
देकर उसे उधारी देख।
फ़िर उसकी मक्कारी देख।
सही बीज, पानी औ खाद,
फ़िर खिलती फुलवारी देख।
अपना तू कासा तो देख,
फिर मेरी दिलदारी देख।
रोटी हासिल कर पहले ,
फ़िर पीछे तरकारी देख।
पड़े पड़े घर के भीतर,
लग जाए बीमारी देख।
काम बनाना है अपना,
थोड़ा पान सुपारी देख।
कश्मीर का राग वही,
जिन्ना से ज़रदारी देख।
हंटर बंदर के हाथों,
नाचे यहां मदारी देख।
बच्चा चिपटा छाती में,
भूखी वो महतारी देख।
चमन सींच अपने खूँ से,
फ़िर अपनी हक़दारी देख।
जिसे बेवफा कहता है,
उसकी भी लाचारी देख।