...

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खामोश_रहने दिया..!!

जो छूटा जहां उसको वही रहने दिया,
सोचा नहीं जो हुआ उसे होने दिया;
थम जाएं ऐसों से ख़ुद न मिलने दिया,
फिर मुनाफिकों ने दिल लगने दिया,

बहुत संभाला फिर भी ना संभलने दिया,
ना दी जिंदगी भीख में,ना सजा में मरने दिया,
ना करीब आने की इज़ाजत मिली ना दूर रहने दिया,
ना बनाया कभी अपना ना दूसरे की रहने दिया।

नखरे हज़ार दिखाने चाहे मैंने,एक भी ना चलने दिया,
आँख तर रही आंसुओं से लहू मन में बहने दिया,
मैं खामोश होती गई होंठ सिलने दिया..
ना डरा कि मुहब्बत रूठ जायेगी जज़्बातों को मरने दिया।

अब मैंने भी सोचा और अदब को संदूक में बंद किया,
अपने लिए जीने की कसम ली, खुद को आबाद किया,
देख लो हमारे भी पंख हैं उड़कर दिखाऊंगी तुम्हें..
तुम जियो अपनी ज़िंदगी, जाओ तुम्हें भी आजाद किया।
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