...

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बाज़ारू बनीं एक कलेक्टर देख फ़रिशाता क्या सोच रहा होगा।।
फरिश्ता नायिका की ओर देख कर,
और दूसरी ओर अपने किए गए एक एक अपराध को देख -क्या क्या बड़बड़ाता होगा।।,
ये तो अरे,
वहीं है जिसे मैंने एक मजबूरी में भोग दिशा बन जाने को कहकर रंगरेलियां मनाते हुए इसे जाने क्या क्या सपने दिखाए थे,
मगर मैंने तो इसे छोड़ दिया था तो ये जिंदा कैसे!
नहीं नहीं ये नहीं हो सकता।।
उसे तो मैंने इतना बे इज्जत किया था कि उसे तो कोई नहीं बचा सकता था।।
तो फिर ये यहां तक कैसे पहुंच सकती हैं।।
ऐसे करते करते वो उसे फंसी चढ़ जाता है।।
और फिर एक फर्ज के चलते एक प्रेम को मिटना ही पढता है।।

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