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अनन्या️️️️
Joined on 7 November 2022
छोड़ आये हम वो गलियाँ
जहाँ तेरे पैरों के कँवल गिरा करते थे
हंसे तो दो गालों में भँवर पड़ा करते थे
हे तेरी कमर के बल पे नदी मुडा करती थी
हँसी तेरी सुन सुन के फसल पका करती थी जहां तेरी ऐड़ी से धूप उड़ा करती है
सुना है उस चौखट पे अब शाम रहा करती है
लटों से उलझी लिपटी एक रात हुआ करती थी
हो कभी कभी ताकीये पे वो भी मिला करती है
छोड़ आये हम वो गलियाँ
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