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महंगी पैंट और सस्ती चप्पल...पाप
क्या हाल है भाई ' मेने उसकी तरफ देखा आधी बाहर निकली सलवटो से भरी शर्ट और पुरानी सी पैंट ,पांवो में सफैद हवाई चप्पल पहने वह मुझे पूछ रहा है ।
अच्छे हैं मैने उत्तर दिया.. वह रुक गया और में मेरे दो मंजिला मकान के सामने मेरी कार को धोता रहा।
पहचाना नहीं क्या.. वह बोला
मैने फिर उसकी तरफ कुछ आश्चर्यचकित होने का मुंह बनाकर.. नहीं कुछ याद नही आ रहा जाने पहचाने से लग रहे हो।
मेरी तरफ बढते हुये वह बोला.. अरे यार बडे आदमी हो गये क्या.. में परेश , अरे वो हाई स्कूल में मेथ्स फेकल्टी में अपन क्लासमेट थे
हां हां याद आया कैसे हो मेने बोला.. और आज इधर कैसे??
वह जैसे मुझसे बात करने के लिये तडप रहा था.. आजकल आपके पडोस में किराये से रहता हूं काम धन्धा नहीं है.. भाई ने घर से निकाल दिया पिताजी है नहीं सेल्समैनी करता हूँ ...यह कहते हुये उसकी गर्दन नीची हो गयी और फिर इधर उधर की बांते और स्कूल के पुराने दोस्तों की बाते करने लगा.. वह बोल रहा था में सुन रहा था...यह सब कुछ समय तक चला और वह सड़क पर आगे की तरफ निकल गया.।
मेंरे हाथ कार पर चल रहे थे और मन 10 साल पहले एक ट्रेन के कोच में सफर करनै लगा ..लोक सैवा आयोग की परीक्षा थी ..यह ट्रेन निकलते निकलते बची थी टिकट लेने के बाद भागकर जैसे तैसे एक कोच में घुस गया पसीना पूरी शर्ट को गीला किये दे रहा था और मैं मेरे प्रवेश पत्र को अपने जैब में दबाये हांफ रहा था कुछ देर दरवाजे पर ही खडा रहा ट्रेन के चलते ही हवा चलने लगी कुछ पसीना सूखते ही होश आया की चलो कोई सीट देखते हैं मेने देखा परेश मैरा हाईस्कूल का क्लासमेट एक सीट पर बैठा है उसके शायद वह भी परीक्षा देने जा रहा है.. उसके पास कुछ जगह मिल सकती है इस उम्मीद में नजदीक गया वह सीट के किनारे वाली साईड में बैठा है
अरे परेश कहा जा रहे हो.. मेने पूछा
अचानक से वह उठा और मुझ पर चिल्लाने लगा "क्या है यह... में समझ चुका था की उसकी प्रेस की हुयी ब्रानडेंड पेंट पर मेरी 100 रुपये वाली चप्पल की धूल लग गयी है
जाने कंहा कंहा से आ जाते हैं भिखारी कहीं के साफ कर इसे.. वह मुझ पर चिल्लाया
में आवाक् सा रह गया मेरे पिता मजदूरी करके जैसे तेसे मुझको पढा रहे थे सो गुस्सा आते हुये भी उसकी दुत्कार पी गया और उसकी पेन्ट अपने रूमाल से साफ करने लगा।
देखी भी कभी ऐसी पैन्ट 3000/- की है यह... तमीज नहीं है तुम लोगो को ..यह कहते हुये वह चौडी टांग करके सीट पर बैठ गया और में कोच की गैलरी में चुपचाप अपने अपमान और मजबूरी के साथ खडा हो गया।
क्या हुआ कार अभी तक धोये जा रहे हो खाना खा लो... पत्नी की आवाज सुनकर मेरा मन वापस वर्तमान में आ गया।
शाम हो गयी बेटा पडोसियो के बच्चो के साथ बाहर खैल रहा था और में घर में बैठकर पिताजी के पांव दबा रहा था अचानक गैट पर किसी ने बैल बजायी ,में दरवाजे के पास गया तो देखा परेश खडा है हाथ में कोई पर्ची है..
एक बार बाहर आना भाई.. वह मेरी तरफ प्रार्थना के भाव से बोला
हां बोल ...दरवाजे से बाहर आते हुये मेंने उससे पूछा
यार 200/- रूपये दोगे क्या, बच्ची की दवायीं लानी है ..जैब में रूपया नहीं है ..यह कहते हुये उसने अपने दोनो हाथ जोड लिये और गर्दन निची कर ली
मैरे मन में अजीब सी स्थिती उत्पन्न हो रही थी.. ज्यादा देर उस समय उसके साथ में खडा नहीं रह पा यहा था 10 साल पुरानी वह ट्रेन जैसे आज हमारी जगह बदल रही थी सीट और 200/-रूपये में कोई अन्तर नहीं रह गया था ...में अन्दर गया और 200/- रूपये लाकर उसको दिये और बिना बोले चुपचाप दरवाजा बन्द करने लगा..परेश कम और उसकी वह सफेद हवाई चप्पल ज्यादा नजर आ रही थी... उधर बैटा खैल रहा था की अचानक आवाज आयी।
ये घडी देखी बहुत महंगी है.. शोरूम से लाये हैं पापा... तूने देखी भी है कभी ऐसी
मैने दरवाजा खोला सडक किनारे खेलते बैटे को गोद में लिया
बैटा ऐसे नहीं कहते.. ऐसा कभी नहीं कहते पाप लगता है.. कहते हुये बैटे को छाती से चिपका लिया 10 साल पुरानी ट्रेन और परेश मैरे मन और आंखो से बहुत दूर जा चुके थे... आंखो में चन्द आंसूओ की बून्दे शेष थी ।
मुकेश कुमार कुमावत