...

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कोई गर्दिश
जब भी पढ़ती हूं...
किसी लेखक को...
या लेखिका को...
तो रूह कांप जाती है।

मै जानना चाहती हूं,की आखिरकार कैसे सह लिया इन्होंने ये दर्द। जो मैं नहीं सह पा रही हूं।
आखिरकार इस दर्द से बाहर आने का कोई रास्ता है तो क्या है। और कभी कभी सोचती हूं...
की ये सब जो दिल टूट वा के बैठे हैं।
क्या ये अब सुकून में आ चुके हैं।
या फिर ये कभी पहले की तरह बन ही ना पाए।

किसी को चाहना, फिर उसको जाने देना।
ये कोई ग़म है, या कोई सजा।
जो इतनी बेरहम है, इसे किसी पर तरस नहीं आता क्या।

और जिसने इतने साल बिताए...
क्या उसे कभी मुहब्बत नहीं हुई होगी....
या फिर उसे मुहब्बत है मगर वो अब छुपाता है।
मगर हमसे बताने में कैसा ऐतराज़।

या उसे इस दुनिया का सामना नहीं किया जाता,
मगर प्यार में डर कैसा, मगर वो डरता है।
फिर प्यार केसा।

ये उलझे से रहस्य है...
इन पर से पर्दा उठाना...
मुमकिन नहीं है।
© jyoti