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आत्महत्या
आज कल आत्महत्या पर ही बातें हो रहीं की करने वाला कायर होता है, पर क्या सच में वो कायर ही होता है ? या फिर बहादुर ? नही नही वो स्वार्थी और निर्दयी होता है। उसे सिर्फ अपनी पड़ी होती है। घर परिवार मित्र किसी के बारे में नही सोचता वो।
आत्महत्या की मनोदशा से मैं भी कई बार गुजर चुकी हूं। 2008 में जब रयूमेटाइड का अटैक हुआ और मेरे सभी अंग शिथिल पड़ गए, करीबी रिश्तेदारों ने भी मुझे मुझे भूली बिसरी कहानी की तरह बिसरा दिया था। यहाँ तक कि उन लोगों ने भी जिनके लिए मैंने दिन रात एक कर दिया था। बच्चे छोटे थे, पति बाहर जॉब में थे और मायके वालों को मैंने कुछ नही बताया था। बच्चों के लिए कुछ न कर पाना, (संयुक्त परिवार में जब माँ असहाय तो बच्चों की भी दशा अनाथ सी हो जाती है) असहनीय दर्द और असहाय सी उपेक्षित मैं, गहरे अवसाद में चली गई थी, बस बच्चों से छिप कर अकेले रोती ही रहती थी। बड़ी बिटिया जो कि छोटी ही थी वो मुझसे छुप कर आँसू बहाया करती। पति छुट्टियों में जब आते तो दुःखी और बेबस से नजर आते। मुझे यही लगता था कि बच्चे और पति मेरी वजह से कितने दुःखी हैं, सबके चेहरे की हँसी छीन ली थी मैंने। तब दिल से एक ही आवाज़ आती थी, कि जिस दिन थोड़ा सा भी आराम मिलेगा, उस दिन मैं खुद को खत्म करके, अपने अपनों को परेशानियों से मुक्त कर दूँगी। अपने असहनीय दर्द पर ध्यान ही नही जाता था। फिर मेरे पति ने माँ को बताया तो तुरंत वो मुम्बई भाई के पास से आईं और मुझे अपने पास बुला लिया। अब मैं और मेरे बच्चे उपेक्षित नहीं थे। और पति भी निश्चिंत हो गए। पर मेरी माँ की मेरी दशा देख कर रौनक गायब हो गई। पापा अलग परेशान। दोनों अचानक बूढ़े नजर आने लगे। अब यहाँ प्यार सम्मान तो मिल रहा था, बच्चे भी चहक रहे थे पर मैं अपने मम्मी पापा कष्ट बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और फिर एक ही रास्ता दिख रहा था, #आत्महत्या।
पर मैंने कहा न कायर नही होते आत्महत्या करने वाले।
उस घृडित विचार के आते ही मुझे मेरे बुझे से मम्मी पापा, अपने दिल की बात बताने को तरसती बेटियाँ, बेबस हारे हुए से पति और सदमे से घिरे भाई बहन नजर आने लगते।
और मैं हार कर फिर अपने दर्द से लड़ने लगती।
फिर धीरे धीरे मायके पति बच्चों के स्नेह से मैं अवसाद से निकल गई, और दर्द को अपना दोस्त मान कर आज भी अपने साथ रखती हूँ पर मजाल है कि आँखों में आँसू भी आए।क्यों कि मैं जान गई हूँ कि माता पिता, बच्चे पति, भाई बहन के अलावा बाकी रिश्ते सिर्फ सुख के हैं, जब आशा नही तो निराशा भी नहीं। आज मेरा असहनीय दर्द भी मेरे चेहरे से कोई जान नही पाता। और मैं सबके साथ बहुत खुश हूँ, और तो और मेरे ससुराल वाले भी मेरी बेटियों को तो बहुत प्यार करते ही हैं, अब मुझे भी फिर सबका प्यार मिलने लगा।
आत्महत्या बुजदिली का काम नहीं है।