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माँ
छुट्टियों के दिन चल रहे थें। बहुत से मेहमानों की घर में आवाजाही चल रही थी। इसी बीच पसीने से लथपथ माँ काम में लगी हुई थी। शाम के समय सभी घर वाले खेलने व टी.वी. देखने में मग्न थे। तब मुझे वो दिख रहा था, जो दूसरों की आंँखों से ओझल था। थोड़े गीले से बाल, आँखों में हल्का सा पानी; जो गिरने को उत्सुक था।
चेहरे पर थकावट एवं उदासी को छुपाते हुए पिछले दो दिनों से बिमार माँ धीरे-धीरे झाडू लगा रही थी। उनके चेहरे को देखकर लग रहा था कि वो मदद मांग रही है। इसी बीच मैं कमरे में सोफे के उस कोने पर बैठा था, जहाँ से मुझे माँ का उदासी भरा चेहरा तथा थका-हारा तन नज़र आ रहा था।
लेकिन दूसरों को टी.वी. में गाने सुनने, फोन चलाने और केरम की गोटियों से फुरसत कहाँ थी।
मैं वहाँ से उठकर जाने लगा, तभी मैंने देखा कि उधर से दीदी आई और माँ से झाडू छीनकर खुद काम करने लगी और माँ को दवा देकर सुला दिया।
वही कुछ दूरी पर खड़ा मैं दीदी को देख रहा था। काम करते हुए उनके भोले से चेहरे पर हल्की सी मुस्कान एवं आँखों में नमी को देखकर, मैं समझ गया की दीदी ने भी माँ को मेरी आंखों से देखा। मैं मुस्कुराता हुआ घर के खुशनुमा माहौल में शामिल हो गया और माँ को जाकर देखा तब तक वह सो चुकी थीं।
© dinesh@M