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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 23 )
मानवी :- चिढ़ते हुए,,,क्या भाई आप भी ना आपके पास कुछ और बात नही होती बोलने के लिए।

सावित्री जी :- बस हो गए तुम दोनो के ड्रामे शरू अब ऐसे ही धीरे-धीरे लड़ना शुरू कर देना।

निहाल :- हँसते हुए,,, माँ अभी तो हमने लड़ना शरू भी नही किया और आप बोल रही हो हमने ड्रामे शरू कर दिए।

मानवी :- टोकते हुए,,,क्योंकि माँ को सब पता है की थोड़ी देर बाद आप खुद ही लड़ने लग जाओगे।

निहाल :- गंभीर होते हुए,,,,हाँ ठीक है,,,अब तू खुद बता रही है की मैं खुद चाची से जाकर बात करू की उन्होंने तुझे क्या कहा है और तू रो क्यों रही थी ?

सावित्री जी :- बात बदलते हुए,,,,तुम्हे किसने कहा की कुसुम ने कुछ कहा है। मानवी और कुसुम तो आज एक-दूसरे से पूरे दिन मिले ही नही है।

तभी मानवी भी हड़बड़ाते हुए निहाल से बोलती है।

मानवी :- झूठी मुस्कुराहट से,,,, नही...