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ख्वाहिश,,,,, कत्ल उम्मीदों का भाग 5
सुखविंदर जी जैसे ही पीछे मुड़ते है तो उन्हे वहाँ अल्का जी कहीं नज़र नही आती सुखविंदर जी घबराकर जब ईधर ऊधर नज़र घुमाकर देखते हैं तो उन्हें साक्षी जी के चिलाने से उन्हे अल्का जी सड़क की तरफ भागती हुई दिखाई देती हैं।

अल्का जी को सड़क की और भागते देख सुखविंदर जी भी घबराहट में उनके पीछे अल्का जी अल्का जी पुकारते हुए भाग पड़ते हैं। सुखविंदर जी अलका जी को पीछे से आवाज़ देकर रोकने की कोशिश करते हैं,,,पर सुखविंदर जी की आवाज अलका जी के कानों तक पहुंच ही नहीं रही थी यां यूं कहें कि अलका जी को कुछ सुनाई देना ही बंद हो गया था।

अलका जी खुद से बातें करते हुए बिना कुछ सोचे-समझे बस भागे जा रही थी और साक्षी जी और सुखविंदर जी उन्हें रोकने के लिए उनके पीछे-पीछे भागते हुए जा रहे थे।पर अलका जी पर तो मानो कोई भूत सवार था,, वह तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

सुखविंदर जी की हालत भी खराब थी।पर वह खुद को मजबूत बना कर इस परिस्थिति का सामना कर रहे थे।बेशक एक माँ अपने बच्चे को जन्म देती है उन्हे पालती पोसती है उन पर अपनी ममता लुटाती हैं ,,लेकिन एक पिता अपने बीवी बच्चों के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं उनके गुस्से में भी अपने बच्चों के लिए प्यार छिपा होता है। एक मां अपने बच्चे के लिए हमेशा दिल से सोचती है पर एक पिता अपने बच्चों के लिए दिल ,, दिमाग दोनों से सोचता है। मां से कहीं ज्यादा गहरा होता है एक पिता का प्यार।पर फर्क बस इतना होता है कि एक मां अपनी ममता दिल खोलकर अपने बच्चों पर निशावर करती है पर एक पिता उतना प्यार नहीं जता पाता।

कुछ ऐसा ही हाल सुखविंदर जी का भी था इस समय वह अल्का जी से भी ज्यादा तो टूट चुके थे दिल दिमाग और शरीर वह हर तरह से टूट चुके थे वह हार रहे थे दुनिया के तानों से अपनी फूटी किस्मत से लेकिन फिर भी वह खुदको संभाले हुए थे।

क्योंकि उन्हे बेटी का पता लगाना था और अपनी पत्नी अल्का जी को भी संभालना था जितना दर्द सुखविंदर जी लेकर घूम रहे थे उतने दर्द में तो एक पत्थर दिल इंसान की भी आह,,,हहहहहह निकल जाए

लेकिन सुखविंदर जी चाहकर भी अपना दर्द किसी को दिखा नही रहे थे वह अपना दर्द किसी को जता नही रहे थे आखिरकार एक आदमी जो ठहरे एक पिता जो ठहरे, एक पति जो ठहरे फिर भला वह अपने आप को टूटते हुए कैसे दिखा सकते थे। एक मर्द घर की छत होता है जिसे हर मौसम को अपने ऊपर लेना ही पड़ता है।

आखिर कैसे वह अपने बेटी के लापता होने का गम किसी से बाँट सकते थे कैसे अपनी पत्नी की हालात को देखकर आँसू बहा सकते थे आखिर समाज के लिए रोना तो कमज़ोर होने की निशानी है तो भला एक आदमी कैसे इतना कमज़ोर हो सकता है कैसे एक आदमी रोकर खुदको कमज़ोर दिखा सकता है।हम औरतें तो अपने अंदर के हर दर्द को,, हर गुब्बार को आंसूओं के जरिए बहा देती है पर आदमी तो अपने हर दुःख दर्द को अपने सीने में दफन कर लेते हैं और बाहर से सबको बहुत मजबूत,, बहुत कठोर दिखाई देते हैं।


अलका जी भागते-भागते घर से बहुत दूर निकल आई थी और सुखविंदर जी और साक्षी जी उनके पीछे-पीछे भागते हुए उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे। अलका जी सड़क के बीचोंबीच भाग रही थी उन्हें कोई होश नहीं था कि वह कितनी दूर निकल आई है। बस "लाड़ो मैं आ रही हूं",,,"लाड़ो मैं आ रही हूं"बोलते हुए भागे जा रही थी। भागते भागते अलका जी एकदम से सड़क के बीचोंबीच गिर जाती है। सामने से एक गाड़ी तेज रफ़्तार से उनकी तरफ आ रही थी। जब सुखविंदर जी देखते हैं कि अलका जी गिर गई है तो वह और तेजी से उनकी तरफ भागते हैं।


सामने से आती तेज रफ़्तार गाड़ी को देखकर सुखविंदर जी और साक्षी जी की सांस अटक गई थी। दोनों अलका जी को आवाज लगा रहे थे पर अलका जी के कानों में कुछ  सुनाई नहीं पड़ रहा था।  सुखविंदर जी देखते हैं गाड़ी अलका जी के बिल्कुल पास आ गई थी और सुखविंदर जी अभी बहुत दूर थे अलका जी से।


गाड़ी में तेज म्युजिक बज रहा था। कुछ लड़के अपनी धुन में मस्त हुए गाड़ी में बजते गीत के साथ साथ खुद भी गाते गुनगुनाते हुए आ रहे थे। शायद पार्टी करके लौट रहे थे नवाबज़ादे।उन में से एक लड़के की नज़र सड़क के बीचोंबीच पड़ी अलका जी पर पड़ती है तो वह लड़का भी घबरा जाता है क्योंकि गाड़ी बहुत नज़दीक आ गई थी ‌।

अरमान गाड़ी रोको ,, गाड़ी रोको,,, अरमान जो गाड़ी चला रहा था उसकी बात सुनकर एक दम से ब्रेक मारता है और एक चीख के साथ गाड़ी रुक जाती है। सुखविंदर जी भी डर से अपनी आंखें बंद कर लेते हैं ‌। और साक्षी जी की तो चीखें निकल जाती है।

दो मिनट बाद सुखविंदर जी आंखें खोल कर देखते हैं,,, गाड़ी अलका जी के बिल्कुल नजदीक आ कर रुक गई थी और अलका जी वैसे ही सड़क के बीचोंबीच पड़ी हुई थी। अलका जी को सही सलामत देखकर सुखविंदर जी की जान में जान आतीं हैं।वह भागकर अलका जी के पास जाते हैं।अलका जी शायद बेहोश हो चुकी थी उनका चेहरा पसीने से लथपथ था।बाल बिखरे चुके थे। सुखविंदर जी अलका जी को उठाने की कोशिश करते हैं,,उनका सिर अपनी गोद में रखते हुए बोलते हैं,,,,,

      अलका जी,, अलका जी,, उठिए उठिए,, देखिए सब ठीक है,, उठिए घर चलिए।पर अलका जी बेहोश हो चुकी थी ‌। एक लड़का गाड़ी में से पानी की बोतल लेकर आता हैं और अलका जी के चेहरे पर पानी के छीटें मारता है।वह दो तीन बार पानी के छीटें मारकर अलका जी को उठाने की कोशिश करता है पर अलका जी को होश नहीं आता। अरमान जो लड़का गाड़ी चला रहा था वह सुखविंदर जी से कहता है,,,,,


    अंकल जी यही कुछ दुरी पर एक हस्पताल हैं। लगता है आंटी जी बेहोश हो गई है।अगर आप कहें तो हम ले चलते हैं आंटी जी को हस्पताल। सुखविंदर जी उन की बात सुनकर हामी भरते हैं और लड़कों की मदद से अलका जी को गाड़ी तक लेकर जाते हैं। साक्षी जी भी उनके साथ जाती है।

थोड़ी देर में हस्पताल आ जाता हैं।सब  लड़के सुखविंदर जी की मदद करते हैं अलका जी को गाड़ी से बाहर निकलने में। एक लड़का अंदर से स्ट्रेचर लेकर आता हैं और अलका जी को उस पर लेटा देते हैं। सुखविंदर जी और साक्षी जी अलका जी को लेकर हस्पताल के अंदर चले जाते हैं। डाक्टर अलका जी को चैक करने के लिए अंदर लै जातें हैं।

कुछ समय बाद सभी लड़के भी वहां से चले जाते हैं। सुखविंदर जी उन सब का धन्यवाद करते हैं। उन लड़कों में से एक लड़का जिसका नाम अरमान था वह सुखविंदर जी को अपना कार्ड देता है जिस पर उसका नाम और अड्रेस लिखा हुआ था और कहता है कि अंकल जी कभी भी कोई मदद की जरूरत पड़े तो बस एक बार काल करना। हमें खुशी होगी अगर हम आपके काम आ सकें तो। इतना बोलकर अरमान और बाकी सब लड़के वहां से चले जाते हैं।


साक्षी जी पानी लेने के लिए चली जाती हैं और सुखविंदर जी वहीं रुम के बाहर एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं। सुखविंदर जी गुमसुम से अपने हाथों को सिर के पीछे टिका आंखें बंद कर के दीवार का सहारा लेकर बैठ जाते। पिछले दो दिनों में जो कुछ हुआ वह सुखविंदर जी के आंखों के सामने एक एक करके आ रहा था।दो दिन में क्या से क्या हो गया था। एक हंसता खेलता परिवार की खुशीयों को तो जैसे किसी की नजर ही लग गई थी।


    सुखविंदर जी आंखें बंद करके बैठे हुए थे। अचानक उनके कानों में एक आवाज पड़ती है और सुखविंदर जी एक झटके में अपनी आंखें खोलते हैं और इधर उधर देखने लगते हैं।  पर उन्हें आस पास कोई भी दिखाई नहीं देता। सुखविंदर जी फिर दीवार के सहारे बैठ जाते हैं।

अरे आआआआ रही हूं,, क्यों इतना भड़क रहे हो ,, डाक्टर के पास समय लग गया।बस आ रही हूं,,, एक तो तुम्हारा गुस्सा भगवान कसम हर टाइम नाक पर  रहता है,,,,एक लड़की फोन पर बातें करती सुखविंदर जी के पास से गुजरती है।जब उसकी आवाज सुखविंदर जी के कानों में फिर से पड़ती है सुखविंदर जी फिर एक झटके में आंखें खोल आवाज़ की तरह देखने लगते हैं। एक लड़की कान पर फोन लगाये,तेज कदमों से हस्पताल के बाहर जा रही थी।

सुखविंदर जी " लाड़ो" यह तो लाड़ो की  आवाज हैं,, मेरी गुड़िया की आवाज हैं। सुखविंदर जी कुर्सी से उठकर उस आवाज की तरफ जाने लगते हैं। एक लड़की हस्पताल से फोन पर बातें करते हुए बाहर जा रही थी। सुखविंदर जी पीछे से उसे देखते हैं तो उनके चेहरे पर खुशी आ जाती है और वह उस लड़की को आवाज लगाते हुए उसके पीछे पीछे भागने लगते हैं।

पर उस लड़की को सुखविंदर जी की आवाज सुनाई नहीं देती।वह तो फोन पर बातें करती हूई अपने में मस्त हो कर चले जा रही थी। सुखविंदर जी आंखों में एक उम्मीद लिए उसके पीछे-पीछे भागते हुए जा रहे थे,,,,,,,

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