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बूढ़ी अम्मा भाग ९
अम्मा सौभ्य को जाने के लिए कहती हैं।
सौभ्य अम्मा के भाव अच्छे से समझ रहा था।
अम्मा ने कोयली से कहा बेटा इन्हें बाहर तक तो छोड़ के आजा।
सौभ्य ने कहा नहीं मैं अपने आप चला जाऊँगा।
बाहर निकलते हुए सौभ्य ने सुना अम्मा अपने पति
सुरेश से कह रही थी आपको जो कुछ कहना था
सौभ्य के जाने के बाद कहते।
पता है मुझे भी आपको मेरे ठीक होने की कोई खुशी नहीं हुई, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन किसी के सामने तो सोच समझ कर बोला
करिए।
सुरेश ..मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तुम मर भी जाओ तो।
इस बार कोयली बोल उठी ...
आप कैसी बातें कर रहें हैं,लगता है आज आपने
अधिक पी ली है।
वैसे ऐसी बातें तो कोई पी कर भी अपने अपनों के
लिए नहीं करता।
सुरेश ..तू चुप रह।
अम्मा कोयली से कहने लगी छोड़ बेटा इसका तो
रोज का ड्रामा है आज कौन सी नई बात है।
सौभ्य अपनी गाड़ी में बैठ समाज में हो रही औरतों
की दुर्दशा के बारे में सोचने लगा।
क्यों लोग एक औरत को शादी करके लाते हैं तो
उस पर वो कैसा भी बर्ताव कर सकते हैं, अपना हक़ समझते हैं। ये सिर्फ कोयली के घर का ही किस्सा नहीं है।अधिकतर घरों में ऐसा ही होता है।
आज उसे जितनी खुशी अम्मा के ठीक होने की थी
उससे कहीं अधिक दुःख उनकी दुर्दशा देखकर हो रहा था।
उसने निश्चय कर लिया कल ही बाबूजी को कोयली
का हाथ माँगने के लिए भेजता हूँ।
सौभ्य ने फ़ोन पर बाबूजी को सारी बात बताई तो
बाबूजी कहने लगे अब इतने भी बुरे दिन नहीं आए हैं, की एक बेर वाली की बेटी के साथ मैं अपने बेटे
का रिश्ता कर दूँ।
उन्होंने सख्त हिदायत दे दी खबरदार अगर अब उस
लड़की से मिला भी तो।
सौभ्य को पिताजी से इस बात की उम्मीद नहीं थी।
सौभ्य..पिताजी आप तो पहले कहा करते थे
तू लड़की तो पसन्द कर।जिस लड़की से बोलेगा उसी लड़की के साथ तेरी शादी कर दूँगा।
सौभ्य के पिताजी ..मुझे क्या पता था तू सच में ही
लड़की पसन्द कर लेगा।
बेटा तुझे नहीं पता ये छोटे लोग ऐसे ही होते हैं।
ये लोग बड़े बड़े घरों के सपने देखते हैं फिर उन सपनों को हकीकत में बदलते हैं
लड़को को अपने प्रेम जाल में पहले फँसाते हैं फिर उनसे अपनी बेटियों की शादी रचाते हैं।
सौभ्य ..पिताजी जब आप किसी को जानते नहीं
तो किसी के बारे में अपशब्द कैसे कह सकते हैं।
सौभ्य के पिताजी ..ठीक है यदि तेरी यही जिद है तो
मैं कल उनसे मिलकर भी देख लेता हूँ।
सौभ्य ने राहत की साँस लेते हुए फ़ोन रख दिया।
© Manju Pandey Choubey