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मरहम...अहसास का
दोनों बच्चों ने अपने कंधों पर भारी बस्ते लादे हुए थे । बस्तों का आकार देखकर ऐसा महसूस हो रहा था मानो स्कूलों का ध्यान बच्चों के मानसिक विकास से अधिक उनकी शारीरिक क्षमताओं का आँकलन करने का हो। 

आगे वाला बच्चा शायद नौ-दस वर्ष का रहा होगा जो लगभग भागते हुए चल रहा था ।और पीछे वाला बच्चा कभी भागता ,तो कभी थककर रुक जाता था,मुश्किल से पाँच छः वर्ष का रहा होगा ।

पीछे वाला बच्चा  रुक गया और रुआँसा होकर आगे वाले बच्चे को आवाज़ लगाने लगा ,"भाई रुक जा,पैर दुख रहा है।

आगे वाले बच्चा मुडा और पीछे वाले बच्चे की वजह से हो रही देरी से चिढकर गुस्से से चिल्ला कर बोला,-

"रोज रोज तेरी वजह से लेट हो जाता हूँ मैं स्कूल के लिए..... जब चला नहीं जाता... तो आता ही क्यों है ...घर ही रहा कर तू ,आज माँ को बोल दुंगा ...टीपू ,तुझे मेरे साथ नही भेजेगी।

"तो मैं क्या करूँ भाई ,मेरे पैर और हाथ दोनों मे दर्द हो रहा हैं प्लीज़ दो मिंट रुक जा .....नही तो मेरा बेग ले लेना ,तू तो बडा भी है न....."छोटा इतनी मासूमियत से बोल रहा था मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ ही गई । बचपन होता ही इतना प्यारा है कि कोई पत्थरदिल ही होगा जिसे नन्हे बच्चों की  मासूमियत लुभाए नहीं । किसी और का तो पता नहीं मगर मुझे छोटे बच्चों की मासूमियत दुनिया की सबसे खूबसूरत नैमत लगती है।

दोनों ही बच्चे बेहद मासूम और प्यारे लग रहे थे, मेरा ध्यान बरबस ही उनकी ओर आकर्षित हो गया था।

स्पष्ट नजर आ  रहा था कि दोनों भाई हैं और स्कूल जा रहे है, और छोटा भाई  कुछ तो भारी बस्ते की वजह से और कुछ बडे भाई की तेज चाल के पीछे दौडने से थक गया था। और इसलिए चलना छोड़ कर खडा हो गया था ,और बडे को उसके कारण स्कूल को होती देरी गुस्सा दिला रही थी ,और शायद वही रोष फूट पडा । वो भागकर छोटे के पास आया और उसे धक्का देकर गिरा दिया ।

छोटा भाई गिर गया और  नीचे पडी बजरी से रगड खाने से उसका घुटना छिल गया चोट से खून रिसने लगा था। ये देख कर मैं अपनी दुकान से बाहर आ गया था ।मेरा जी हुआ कि बड़े लड़के को जाकर एक तमाचा लगाऊँ,और उसे छोटे भाई के प्रति संवेदनशील बनने की सीख दूँ।

मैं यही करता भी अगर अगले दृश्य ने मेरा दिमाग नहीं बदल दिया होता। मैंने देखा छोटा भाई अब बिलकुल नहीं रो रहा था बल्कि उसके चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही थी ।और  अभी तक जो बडा भाई बहुत गुस्से मे नजर आ रहा था ,अब वो नीचे बैठकर बडे प्यार से छोटे भाई की चोट पर फूंक मार रहा था ।

कमाल का तरीका था ये इलाज का,और जबरदस्त मरहम था ये लगा कि मानो जख्म का दर्द ही नहीं, शरीर की थकान भी खत्म हो गई हो ।

फूंक मारकर अपने तरीक़े से बडे भाई ने छोटे की चोट पर ये कैसी मरहम लगाई थी ......मैं ये तो समझ नहीं पाया ,मगर ये साफ नजर आ रहा था कि इस मरहम ने अपना काम बखूबी किया था और इसका असर पैर की चोट के साथ दिल पर भी नजर आ रहा था ।

मैं चकित था कि अभी कुछ पल पहले जो छोटा भाई पूरी तरह से थका हुआ था वो अब पहले ही की तरह कंधे पर बस्ता उठाए चल रहा था मगर अब उसकी चाल और चेहरे के भाव अब उल्लास छलका रहे थे ......और बडा भाई जो पहले स्कूल पहुंचने मे देर होने की वजह से छोटे पर नाराज हो रहा था ,अब उसके कंधे पर हाथ रखकर ऐसे चल रहा था मानो सभी डर और चिंताओं को जीत लिया हो उसने ।

मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी ,मन हो रहा था कि कोई चमत्कार हो जाए और मैं भी बच्चा बन जाऊँ, फिर से....।

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© बदनाम कलमकार