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करवा चौथ
जीवन की इस भागदौड़ में एक वही तो है,
जो अपना होने का अहसास कराती है।
मेरी कुशलता के लिए,
न जाने क्या-क्या करती है?
व्रत-उपवास रखकर मेरे खातिर,
अपनी आत्मा को मसोसती है।
करवा चौथ जब आती है,
अपने सदा सुहागन रहने की मांग फिर दुहराती है।

दिनभर भूखी- प्यासी रह कर भी,
मेरे घर जाते ही अपने फर्ज सारे निभाती है।
अपने चेहरे पर लिए मुस्कान,
वह मेरी सेवा में पलक-पांवडे बिछाती है।
दाम्पत्य की गाड़ी को यों आगे बढाने में,
वह कोई कसर नहीं छोड़ पाती है।

करवा चौथ के दिन मेरी खातिर
सोलह श्रृंगार करती है ।
छलनी से निहार कर चंदा को
मेरे प्रेम में खो जाती है ।।

पिलाता हूँ जब मेरे हाथ से पानी,
मानो उसकी तपस्या सफल हो जाती है।
कर पूजा अर्चना जब मेरी आरती वो करती है,
भारतीय संस्कृति साकार हो जाती है।

खा कर रूखा-सुखा घर में जो मिला,
आत्मा उसकी तृप्त हो जाती है।
जंग जीत जीवन साथी के जीवन की,
वह सति सावित्री समान धन्य हो जाती है ।।

उसका हंसता हुए चेहरा सदा देखते रहने को,
मेरी भी आत्मा उसकी लंबी आयु मांगती है।
दोनों के इस नये जोश,उमंग से
जीने की लालसा बढ़ जाती है।
अहा! कितनी अच्छी है यह करवा चौथ,
हर साल मेरी आयु बढा़ जाती है।
✍️ स्वरचित
सूरज शर्मा 'मास्टर जी'
ग्राम-बिहारीपुरा, जिला-जयपुर, राजस्थान 303701

© Suraj Sharma'Master ji'