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चाय पर चर्चा
दिलावर सिंह की दुकान पर चाय से अधिक गरम लोगों की बहस हो रही थी।हो भी क्यों न चर्चा चुनाव की , राजनीति की और नेताओं की। मानो ऐसा लग रहा था कि ये दिलावर की चाय की दुकान न हो अलबत्ता संसद भवन की गंभीर कार्यवाही हो। सुखराम चाचा तो मूंछों पर बार बार ताव देकर कहते है अरे इस‌ बार घंटा के चिन्ह पर ही मुहर लगेगी बाकी सब तो चारों खाने चित होंगे। वाह चाचा वाह आप ही आक्टोपस पाल हो रहे है, पीछे से रवी तेज़ आवाज़ में चिल्लाया। घंटा जीतेगा "घंटा"। ऐ रविया थोड़ा होश संभाल कर तू जानता नहीं नेताजी हमारी जाति के। पार्टी हमारी और तू है कि अटं शटं बोले जा रहा है । दामोदर की तीखी आवाज कानों में गूंज पड़ीं, तभी इमरान बीच में बोल पड़ा अरे आप लोग तो ऐसे ही लड़े जा रहे हो ।
इस बार के चुनाव में चांद सितारा ही चमकेगा, देख लेना । तब तक दिलावर सबको चाय का कुल्हड़ थमा देता है और कहता है भाइयों जीते कोई हारे कोई मेरी चाय न छोड़ देना। तभी सब खिलखिलाकर हंसने लगते हैं।
अजय मास्टर रामचंद्र पासवान से पूछता है मास्टर साहब आपकी क्या राय है इस बार के चुनाव को लेकर। मास्टर साहब कहते है कि भाइयों जीते कोई भी लेकिन बिना विकास के सब एक जैसे हैं हमें चुनाव जाति ,धर्म , क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर देखने चाहिए। न कि कौन किस जाति किस धर्म का है । ये बिल्कुल ठीक कहा आपने मास्टर साहब। बगल में बैठे दीपक झा ने कहा। क्योंकि चुनाव सिर्फ महोत्सव या सत्ता पाने की चाभी नहीं है ये देश के सभी नागरिकों के हित और अहित को भी पूरी तरह से बनाते और बिगाड़ते हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य यही होना चाहिए।कि हम एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कंडिडेट का चुनाव करें। न कि किसी गुंडे या चोर का। नेता ऐसा होना चाहिए जो सबका विकास करें न कि स्वयं विकसित हो जाएं। मेरा तो यही राय है मास्टर साहब ने कहा। तभी अचानक वहां से एक रैली निकल रही थी तो‌ चाय की चर्चा फिर से वही आ पहुंची जहां से शुरू हुई थी।



© Yogendra Singh