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स्वीकार्यता
मित्रों सुप्रभात।
मित्रों, बहुत पर्दे किये हैं उस परमात्मा ने, सत्य कहता हूँ,मेरी और आपकी कमियां अगर निकल कर सामने आ जायें, तो हम शक्ल ना दिखा पाएँ एक दूसरे को, बहुत कारसाज (दयालु) है वो,
कोई झांकने को तैयार नहीं अपने भीतर, मैं भी नहीं।धर्म पर मेरे अपने शोध हैं, मैं अपने अनुभवों से सीखता हूँ,किताबों से उन्हें परखता हूँ बस
मेरा अनुभव कहता हैं, जो बाहर से जितना साफ सुथरा दिखता हैं, सजा सवरा, वो अंदर से अनुमन मठमैल हीं होता हैं, उसकी आवशयकता है, सजना सवरना, आज के संदर्भ मैं, क्यूंकि आत्मा सडन्ध मार रहीं है अंदर से उसकी , क्रोध बाहर आने को है,स्नान जरुरी है उसके लिये, अन्दर से गंदगी पर्याप्त मात्रा मैं आ रहीं है।
हम कारण का समाधान नहीं ढूंढ़ते,
आप कभी गंदे से गंदे, पतित से पतित व्यक्ति के पास ठहरना दो मिनट, उसके विचार सुनना,वो सफाई से दूर शायद इसलिए हुआ, क्यूंकि वो देख और भान चूका होता है अंदर की गन्दगी, वहाँ काम करता है वो, कहीं भी सो जाता है, कुछ भी खा लेता है, बीमार नहीं होता, हमारी देह को स्वतंत्रता है, लचीली है वो, पर आत्मा को नहीं, वहाँ जो दाग़ लगा तो लगा।
हाँ वो बात और है, की दोनों स्न्नान हों अन्दर और बाहर के। बाहर की कुरूपता सभी की चली गई है अब, कोई ऐसा नहीं जो अब सुंदर ना दिखता हों,। पर अन्दर, बड़ी भयावह स्थिति है अन्दर की।( रजनीश )

© rajnish suyal