...

2 views

तो कटेंगे ना
न जाने क्यों जिंदगी के दायरे हमेशा उलझन सुलझन के खेल खेलते ही आगे बढ़ते हैं आज कल के जमीन खरीदी बिक्री के सारे खेल आर आई पटवारी तहसीलदार के अनुमोदन के संभव ही नहीं होते हैं तरह तरह से क्रेता विक्रेता दोनों ही
इन तीन तिलंगों के बिना सौदा कर ही नहीं पाते थे

कुछ समय पहले की बात थी हमारे एक मित्र थे नाम था शिवा राव
वो धान कुटाई के कार्य से अपनी घर गृहस्थी चलाते थे पाई पाई जोड़ते ढाई लाख रुपए में शहर से आठ दस किलोमीटर दूर ग्रामीण एरिया में बीस डिसमिल का एक टुकड़ा जिसमें दो तरफ सड़क थी खरीद लिया था
कुछ समय बिताने के बाद लगभग दस बारह बरस बाद उन्हें अपनी बेटी के हाथ पीले करने हेतु धन
की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने उस जमीन के लिए खरीददार की तलाश शुरू कर दी काफी दिनों की मशक्कत के बाद मन माफीक रेट पर एक खरीददार उन्हें मिल गया किन्तु उसने एक शर्त रख दी पहले उन्हें नाप जोख कर...